कुछ दिन हुए
एैसे
लगे बरस बीत गये,
अरमानों
के लदे
शेष
यादों के दरख्त
टूट कर
तिनके हो गए।
न रहा
शब्दों का सहारा,
शब्द
कोष के पन्ने होकर
अलग-अलग
न जाने
बिखर
कहां गए।
रह गया
आवरण
शेष
जिन्दगी का,
जिसके
नाम के
अक्षर
सभी मिट गए।
लुटते
रहे वफा के नाम
हमें
बेवफा होकर ये,
छोड़
कर मझधार में हमें
खुद
किनारे हो गए।
हमदर्द
थे जिनके
हम रह
न सके,
नजरों
में जमाने की
बिना
गुनाह किए
गुनहगार
हो गए।
No comments:
Post a Comment