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Wednesday 31 October 2012

यहां मत आया करो


बहारों की कली ने जब मना कर दिया,
कि भँवरे यहां मत आया करो।
तो पतझड़ की चोट सहती लता बोल उठी, 
कि बसंत यहां मत आया करो। 

गम से भरे दृग ने जब मना कर दिया,

कि अश्‍कों इस तरह मत बहा करो।

तो दर्द भरे दिल भी बोल उठा,

इस तरह मेरे जख्‍मों को हरा मत किया करो।

अंधे की लाठी भी जब बोल उठे,

कब तलक साथ चलोगे मत चला करो।

तो उनकी निगाहें भी बोल उठी,

मेरी निगाहों से देखना छोड़ दो।

तकदीर का दर्पण भी जब बोल उठे,

टूट भी जाऊं तो मुझे जोड़ना छोड़ दो।

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Tuesday 30 October 2012

तुम कौन से चिराग़ की लौ हो !


तुम कौन से चिराग़ की लौ हो,
जिससे जीवन में रोशनी नहीं।
तुम कौन से गगन की रात हो,
टि‍मटिमता तारा जिसमें एक भी नहीं।
तुम कौनसे सागर की गहराई हो,
जिसके बन्‍द सीप में मोती एक भी नहीं।
तुम कौन सी काठ की नैया हो,
जिसका मांझी है पतवार नहीं।
तुम कौनसी अविरल जल की धारा हो,
धरती को जो सींच सकती भी नहीं।
तुम कौनसी वो बंजर जमीं हो,
जिसने अब सोना उगला नहीं।
वो खान भी क्‍या जिसके 
चारों ओर जिसके घार भी नहीं।
इनको हटा दोहर कर इनका
सोना निकालो कोयला नहीं।
ये कौन से जमाने की हवा है
जिसमें आने वाले कल की खुशबू नहीं।

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Monday 29 October 2012

बेनाम सी जिन्‍दगी हो गई अब


बेनाम सी जिन्‍दगी हो गई अब
यादों के टूटे खण्‍डहर में खो गई अब।
बेबस सी भटकती रूह
तलाशती नए घर खो गई अब।
बेजार सी ये आंखें,
अपनों के बीच खोजती
स्‍वयं खो गई आंखें अब।
ये कौन सी जिन्‍दगी जी रहा हूं मैं, 
शक के दायरों में,
संकीर्णता बढ़ती इसकी जा रही है अब।
साथ कोई देने वाला नहीं,
मैं कौन सा अभिमन्‍यू बनूं,
जो चक्रव्‍यूह तोड़े अब।


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Monday 22 October 2012

आभूषण


एक आभूषण तुम और पहन लो,
दुलर्भ है फिर कभी न मिलेगा।
जीवन भर पछताओंगे,
हाथ मलते अंधेरे में खो जाओगे,
अहसास की ठंडी आग में
जल राख हो जाओगे।
कुछ ही लोग पहना करते हैं,
किस्‍मत वाले होते हैं वो।
सब के बस की बात नहीं,
बहुत कुछ खोना, पाना पड़ता है
झुकना न जाने कहां कहां पड़ता है।
आबाद इसी से उनकी 
दुनियां सदाचार की रहती है
यही आभूषण तुम्‍हारे मस्‍तक की शोभा है।

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Sunday 21 October 2012

क्षणिकाएं

सपनों का सहारा ले

मेरे संग न खेलो

काम न आ पाएं

अपनों का सहारा ले लो

शायद फिर अपने काम न आ पाएं।

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ये कौन सी शाम है

मेरे सामने बैठ गुमसुम

अपने में खोई सोई सी

ये आंखें कौन हैं।

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