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Friday 19 October 2012
मानव रत्न
दुनियां की भीड़ में,
तलाशता मानव रत्न।
मिला न कोई,
मिला तो सिर्फ एक
मानव रत्न।
तराशा जिसे अपनी
चारित्रिक अंगुलियों से।
चमकाया अपनत्व की
पालिश से जिसे।
रास न दुनियां को आया
चमक बिगाड़ने पर तुली
हथियाने की कोशिश में।
बन्द यादों की डिबियां में,
मन की तिजोरी में रख्
संभाला मानव रत्न।
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