बहारों की कली ने
जब मना कर दिया,
कि भँवरे यहां मत
आया करो।
तो पतझड़ की चोट
सहती लता बोल उठी,
कि
बसंत यहां मत आया करो।
गम से
भरे दृग ने जब मना कर दिया,
कि अश्कों
इस तरह मत बहा करो।
तो
दर्द भरे दिल भी बोल उठा,
इस तरह
मेरे जख्मों को हरा मत किया करो।
अंधे
की लाठी भी जब बोल उठे,
कब तलक
साथ चलोगे मत चला करो।
तो
उनकी निगाहें भी बोल उठी,
मेरी
निगाहों से देखना छोड़ दो।
तकदीर
का दर्पण भी जब बोल उठे,
टूट भी
जाऊं तो मुझे जोड़ना छोड़ दो।
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बहुत खूब सुंदर प्रस्तुति,,,,
ReplyDeleteRECENT POST LINK...: खता,,,