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Friday 5 October 2012

काव्‍य मंजूषा (मेरा प्रयास)


मैं कवि पुत्र हूं। मेरे पिता ठा. रघुनाथ सिंह ''यादवेन्‍द्र'' अपने विद्यार्थी जीवन से ही निरन्‍तर कलम को गति दे रहे हैं। उन्‍हीं के अनुरूप मुझे भी कुछ कलम से लगाव था और मैने भी अपने विद्यार्थी जीवन से ही कलम के द्वारा अपने मनोभवों को कागज की ओर दिशा दिशा देने की कोशिश की। इस प्रयास में कहीं तो सफल भी रहा तो कहीं विराम भी लग गया। पर मन के अन्‍दर आन्‍दोलित हो रहे भावों को दबा न सका। और फिर लग गया कलम को गति देने में। समय-समय पर उसमें में समय की छड़ी विराम लगाती रही और इसी तरह निन्‍तर गति और विराम का खेल चलता रहा। 

मेरे मनोभावों को जिन्‍हें कभी प्रकाशनार्थ नहीं भेजा और न ही कभी मोह रखा की यह प्रकाशित हों, पर जितना भी कागज पर उकेरा गया वह सब अप्रकाशित है और स्‍वरचित है। इस ब्‍लॉग के माध्‍यम से मेरा आपके सन्‍मुख रखने का प्रयास भर है.....

आशा है कि आपके मन पर कितना प्रभाव डालते है मेरे ये कुछ प्रयास। कुछ भी गलतियों की संभावनाएं भी है इसमें। इसी उम्‍मीद के साथ इस प्रयास को नया आयाम देने और सुधार की गुंजाइश से मार्ग दर्शन करेंगे।

---आपका कुं. संजय सिंह जादौन

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