अब सार्थक होंगी ये सदाएं
दी थी जो अकेलेपन की वीरान गलियों से।
अब आएगी फिर नए अन्दाज से बहार,
उजड़ गई थी जो पतझड़ से।
आ रहा बासन्ती मौसम
बन कर पूर्वाई
अतृप्त धरा की प्यास बुझाने।
काली घटा बनकर ले अपनी बदली
उड़ चलेगा पछुवाई बनकर
चीरती बयार इन्द्रधनुषी पथ से।
-----