Click here for Myspace Layouts

Sunday 21 October 2012

क्षणिकाएं

सपनों का सहारा ले

मेरे संग न खेलो

काम न आ पाएं

अपनों का सहारा ले लो

शायद फिर अपने काम न आ पाएं।

-----

ये कौन सी शाम है

मेरे सामने बैठ गुमसुम

अपने में खोई सोई सी

ये आंखें कौन हैं।

----

2 comments: