Click here for Myspace Layouts

Wednesday 17 October 2012

यादों का सफ़र


यादों के साए में

तमाम उम्र गुज़ार दूं,

याद में तेरी आंखों के क्‍या

लहू का एक एक कतरा भी लुटा दूं।

भुला न सका तेरी याद का,

एक एक पल सुबह शाम के नाम का

मिटा दूंगा हर एक अक्षर

तेरे लिए अपने नाम का।

यादों के इस बोझ को लिए

तय कब तक करना होगा

सफ़र जिन्‍दगी का

लिए सहारा तेरे नाम का।

सहनी कब तक होगी,

सह कर भी न सही जाती

भुलाए नही भूलती तेरी यादें,

शेष रह जाती है

तब भी जिन्‍दगी में

छुपाए नहीं छुपती

अपनों में भी कहां,

तलाश लेती हैं

आकर मुझे यहां तेरी यादें।

यादों के सुनहरे मोती

बंधी हुई है

प्रीत के तार में

याद बस रहे

बिखर न जाए

तेरी यादों की ये लड़ी।

-----

No comments:

Post a Comment