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Tuesday 16 October 2012

अब अन्‍धकार न देना


एक दिन हम साथ होंगे।
जिन्‍दगी को साथ निभाएंगे।।
तेरे लिए हर दिन नया लाएंगे ।।।
तुझे एक नज़र देखेंगे,
अपनी तसल्‍ली के लिए।

मालूम है देखते ही रूठ जाओगी,
एक बार फिर मनाएंगे
आने वाली जिन्‍दगी के लिए।।

सुबह का कोहरा यूं छटने लगा,
सामने चेहरा तुम्‍हारा यूं दिखने लगा।
चांद दूज का दिन में जैसे दिखने लगा।।

तेरे नूर पर है सुबह की लालिमा
याद दिलाती है आने वाले कल की
इन्‍तज़ार है उस पल का, कब होगा मिलन
आने वाली सुबह का।

कत्‍ल तूने किया जिगर
इसलिए मैं कातिल हूं,
गुनाह तूने किया
इसलिए मैं गुनहगार हूं,
बरी तूने कराया,
इसलिए मैं निर्दोष हूं।

आंखों के तेरे दो मोती
टिमटिमाते तारे नील गगन में,
रोशनी तुम्‍हीं ने दी
शमा को रौशन किया
अब उसे बुझाकर
अन्‍धकार न देना।

नज़रों के झुरमुट से गुजरता हूं मैं
एक नज़र टकरा जाती है मुझसे,
दुनिया की चकाचौंध में
एक शमा टकराती है मुझसे।

दीप कई पर ज्‍योति एक
वाणी एक मुख अनेक
चेहरे कई पर
पहचान एक।
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2 comments:

  1. वाह बहुत सुंदर रचना,,,,बधाई

    नवरात्रि की शुभकामनाएं,,,,
    RECENT POST ...: यादों की ओढ़नी

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  2. वाह , जवाब नहीं आपका । लाजवाब !

    ReplyDelete