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Thursday 21 February 2013

मिल गया



उलझनों के भँवर में
फँसी जिन्‍दगी को
आज फिर एक सहारा मिल गया।

हकीकत से दूर
भागती उम्‍मीदों को
एक मुकाम मिल गया,
अपनों से जिन्‍दगी को
आज फिर एक उपहार मिल गया।

नश्‍तर चुभते
जिस्‍म में
कोई अनचाहा जख्‍म दे गया,
बहती अश्रुधारा
कराहती जिन्‍दगी में
आज फिर कोई मरहम दे गया।

पुल्कित से मन को
नया परवाज मिल गया,
फैले नील गगन में
आज फिर क्षितिज पर एक सितारा मिल गया।

अंधेरों में भटकते
अरमानों के कदम,
उदास आंखों को
आज फिर एक ख्‍वाब मिल गया।
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Tuesday 19 February 2013

नीम तले



नीम तले
रेशमी जुल्‍फों की छांव में
छनती सुहरी धूप
तुम्‍हारी बाहों में।

बहती पुरवाई
नरम धूव पर
एक सुकू की तलाश
तुम्‍हारे मखमली आंचल में

पल-पल गुजरता गया
अनजानी सी चाह लिए
एक सन्‍नाटा
घड़ी की चाल में।

सुलती सी दोपहर
मुरझाई सी शाम
नहला गई चांदनी
सियाह रात में।

न सुर सजे
न साज बजे
खूब सजी महफिल
तुम्‍हारी इन अदाओ में।

न वो नज़र आए
न आने की खबर
उदासी ओढ़ चली
इन विरान राहों में।

धूप इन्‍तजार करती रही
कहीं छांव तो आए
उनके आने की खबर
हो इन हवाओं में।

थकी निगाहें
पथ पर, पथिक पर
भीड़ में एक चेहरा
नज़र तो आए
इन निगाहों में।

हवा का एक झौंका
थी खबर उनके आने की
एक झलक और ओझल हो गई
मेरी गली की इन राहों में।
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Monday 18 February 2013

रंगों का त्‍यौहार



लो आया बसंत
झूंम उठा अमलतास
फिजाओं की मिठास
लो आया रंगों का त्‍यौहार।

फाल्‍गुनी बयार ने
बिखेरा अबीर-गुलाल
तन-मन रंग लो
न रहे कोई मलाल
लो आया रंगों का त्‍यौहार।

ये गलियां और चौबारा
रंगों से है सराबोर
मस्‍तानों की टोली
खड़ी है तेरे द्वार
लिए अबीर-गुलाल
लो आया रंगों का त्‍यौहार।

रखना संभाल
कोरा आंचल, गोरे गाल
राह तक रही होगी
बाहें फैलाए
लिए अबीर-गुलाल
लो आया रंगों का त्‍यौहार।

नाचे मन मयूर
झूम उठे तन-मन
भीगे चोली और दामन
लिए उमंग और प्‍यार
लो आया रंगों का त्‍यौहार।

रंगों से निखरेगा
रूप और तेरा यौवन
संकुचाई सी देगी
मौन स्‍वीकृति
उढ़ेलने को रंगों भरा दुलार
लो आया रंगों का त्‍यौहार।
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Sunday 17 February 2013

उठी निगाह रोई-रोई सी



रूमानी हुई लेखनी
कलम खूब रोई
आंसूओं सी बिखर गई
स्‍याही कागज से कोरे आंचल पर।
रूक गई आहिस्‍ता से
फिर चली बंजर जमीं पर
घबराई सी कोरे कागज पर।
दृवित हुआ मन
सदाएं देती खामोश सी
शुष्‍क अधरों पर
वाणी भी कपकापाई सी।
पुलक्ति  हुआ मन
आंखों में रूलाई सी
इबारत को दोष देती
उठी निगाह रोई-रोई सी।
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Sunday 10 February 2013

सहारा दे दो




पथराई सी थकी आंखों को
एक नज़र का सहारा दे दो।

भँवर में फंसी कश्‍ती को
एक पतवार का सहारा दे दो।

बह न जाएं मझधार में हम
एक किनारे का सहारा दे दो।

समय रू गया है तेरे इन्‍तजार में
एक पल का सहारा दे दो।

लड़खड़ा न जाएं गर कदम तेरी चाहत में
अपनी खमोश बाहों का सहारा दे दो।

सांझ ढले उतरती तनहाइयां रात के पैमाने में
अपने लहराते आंचल का सहारा दे दो।

सर्द हवाओं में कांपते लबों को
एक मुस्‍कान का सहारा दे दो।

स्‍मृतियों के घरोंदों से गुम हुआ
अक्ष तुम्‍हारा
एक तस्‍वीर का सहारा दे दो।
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