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Thursday 27 December 2012

पतझड़



अब सार्थक होंगी ये सदाएं
दी थी जो अकेलेपन की वीरान गलियों से।
अब आएगी फिर नए अन्‍दाज से बहार,
उजड़ गई थी जो पतझड़ से।
आ रहा बासन्‍ती मौसम
बन कर पूर्वाई
अतृप्‍त धरा की प्‍यास बुझाने।
काली घटा बनकर ले अपनी बदली
उड़ चलेगा पछुवाई बनकर
चीरती बयार इन्‍द्रधनुषी पथ से।
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Tuesday 25 December 2012

बिन तेरे


बह रही जीवन नैया
अश्‍कों की धार पर
बिन आंचल के पाल के।
किराना कर किनारे से
फंस गए मझदार में,
बिन बांहों की पतवार के।
चल रही आंधियां
लौट गा बसन्‍त भी
सूरज की तपती तेज किरणें
हो गई चंदा की चांदनी भी
बिन शरद की छावं के।
तन्‍हाइयों से जज्‍ब अंधेरों से
गुज रही जिन्‍दगी
जला रही रोशनी
तुम्‍हारी याद के दीपों की,
ऐसे में तक संजोए रखूं
इन दीपों की रोशनी
बिन उजाले अंधेरी छांव के।
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Saturday 22 December 2012

आ जाओ....


आ जाओ
विरह के मौसम ने
चकरोर बना दिया।
तुम चंदा की
चांदनी बनकर आ जाओ।
मिन की प्‍यास ने
चातक बना दिया
तुम बिन बादल की
बरसात बन कर आ जाओ।
तुन्‍हाई की रात
सोने नहीं देती,
तुम बिन ख्‍वाब की
निंदिया बन कर आ जाओ।
तुम्‍हारी खुरबत
शिकस्‍त दे रही रही है
तुम जीत मेरी
‘’विजय’’ बन कर आ जाओ।
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Thursday 20 December 2012

सिर्फ एक तेरे दीदार के लिए।


सांस लेना भूल गए
तुम्‍हारी यादों के आंचल में।
सब कुछ खो जाए गर,
पा लूंगा
तुम्‍हारी जुल्‍फ के
घने साए में।
मूँह मोड़ लूं
गर दुनियां से बाबस्‍ता, सिर्फ एक तेरे दीदार के लिए।

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Tuesday 18 December 2012

बेबस फागुन


ले आया फागुन
रंगों का त्‍यौहार
होलिका तो जल गई
अहम् की होली में
लेकिन दहक रही मन की होली।
रह रहकर चटकती है
अतीत की चिंगारियां
ले जाते हैं लोग
कुछ चुन-चुन कर
दहकते अंगारे तुम्‍हारी याद में।
छुपा रखे हैं पहले ही सीने में
दहकते अंगारे तुम्‍हारी याद के
बुझ न सकेंगे न ठंडे हो सकेंगे
नयनों की रंगीली धार में।
दुलहण्‍डी की रंगीन किरणें
फैल गई धरा के आंचल पर
रंग गया
गोरा बदन मिलन के रंग से।
उतर गया मन रंगों की दुनिया में
रंगता गया तन-बदन
रंग न सका कोई मन।
बस यू ही खड़ा रहा
मुट्ठी भर अबीर लिए
फैला दी दोनों बांहे
तुम्‍हारी चाहत लिए।
न आंचल भीगा, न चोली
कोई क्‍या करे
नयरों की पिचकारी लिए
अबके बरस
यूं ही निकल जाएगी
तेरे इन्‍तजार में होली।
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Monday 17 December 2012

विजय


तुम जहां हो
मैं वहां कहां
समय की दीवार खड़ी
इन्‍तजार की बेडि़या डाल।
दूरियों की पराधिनता में कैद
हर पल रूका हुआ,
पर जारी है जिन्‍दगी का सफर
फांसले कम हो रहे हर पल
पर युग-युग से बीत रहे हैं।
मंजिल पास है पर करीब नहीं
राहें हैं पर साथी नहीं,
कट न सकेगा यूं सफर
पर ऐसे में कहां मिलेगी ‘’विजय’’
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Saturday 15 December 2012

रात का सौदागर


रात कितना रोई तुम्‍हें ना पाकर
मन को घरोदें में छिपे क्‍यों रहते हो तुम
दिन बीत गया निशा के द्वार तक
ख्‍वाब अस किसके लिए चुराऊं।
रात भी बीत गई
अखियों के झरोखे से भी न आए तुम
शयन शैया तुम्‍हारे स्‍वप्‍नों से भरी कहां
जो अपनी आंखों में बसाऊं।
तरसा दिया-तड़पा दिया
मोहताज कर दिया सपनों के सौदागर को
चल पड़ा वो बन कर सपनों का सौदागर
गया खरीदने ख्‍वाबों की एक कली
न थे लताओं पर फूल।
कुछ सींचा, कुछ पाला
तैयार कर ख्‍वाबों की बगिया
ले चला न जाने कौन अपना बना
ख्‍वाबों की उस कली को।

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Friday 14 December 2012

क्षणिकाएं


कुछ जिन्‍दगी यूँ कटी पहले
न काँटों पर थी न फूलों पर
अब यू कट रही जिन्‍दगी
लुड़कते राह के पत्‍थर की तरह।
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शामिल होगा जब वो क्षण
सज जाएगी महफिल जिन्‍दगी की
इन्‍तजार अब तो महफिल शुरू होने का
अब कोई पर्दा नशीं न आए
तो बज उठे बांसूरी जिन्‍दगी की।
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सदा मुस्‍कुराहट रहे जिन्‍दगी में
तुम्‍हारे चेहरे पर रहे
जैसे टोकरी की गोद में रखे
मुस्‍कुराते फूलों की तरह।
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Wednesday 12 December 2012

भ्रम


शबनम् के शीतल मोती
याद में तुम्‍हारी जलाते रहे
मरहम ही नहीं जख्‍मों पर लगाने के लिए।
घुट-घुट कर रही जाती है
तुम्‍हारे अहसास की वो किरण
बन्‍द कमरे के किसी कोने में।
तुम्‍हारी याद फिर भ्रम पैदा करती है
तुम्‍हारे करीब होने की,
दुनिया के रास्‍तों से न सही
एक पल के लिए चले आओ
ख्‍वाबों के रास्‍ते से ही सही।
उतार लेंगे अपने ख्‍वाबों के शहर में
मैं और तुम गुजार देंगे विरह की काली रात,
उसी के आंचल को ओढकर
कर देंगे विदा तुम्‍हें,
सुहानी भोर के आने से पहले।
दूरियों की बजती वो शहनाई
छेड़ जाती है ये,
तुम्‍हारे बिछोह की रागनी
रूला देती है, जिस्‍म के रोम रोम को
शिकस्‍त यही खाने को।
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Friday 7 December 2012

लरजते आंसू


लजरते आंसूओं से
भीगे दामन में पनाह दे दो
सूरज की सुनहरी
बनकर गर्म किरणें
समाने दो भीगे दामन में।
सोख लूंगा बहने
सभी आंसूओं को
रोक लूंगा बहते आंसूओं को
नयनों में अपने पनाह दे दो।
अपने मन मंदिर में
आसरा दे मुझे दो,
हम भी दु:खों में
हमसफर हो लेंगे
अपने आंचल में पनाह दे दो।
बचा लूंगा इन्‍हें
किसी के सामने
गिरने से
लरजते आंसूओं से
भीगे दामन में पनाह दे दो।
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Wednesday 5 December 2012

चिंता


खामोश पड़ी
इन्‍तजार की चिता
अब धधक उठी है।
इन्‍ही के शोलो में
सुलग रहा हूं मैं,
एक मिलन की आस लिए।
उठ चल अपने सावन के साथ
काली घटा बनकर,
आंचल में तुम जो समेट लाई हो
बरसा दे वो शबनम के मोती
अब तो कुछ राहत मिले।
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