सुबह की लालिमा
बिखेरने लगी
सुनहरी किरणें
बन्द कमरों के
झरोखों से
सुनहरे दिन का आगाज
करती है।
उठना एक अलसाई सी
अलहड़ नवयोवना का
सृजन करती
नई आशाओं और विश्वास
का
पूजा की थाली
सजाती है।
शरद चांदनी की
किरण से
रोशन हुआ तेरा नूर
पूनम के चांद का
अहसास करती है।
श्वेत शीतल
चाँदनी ने
ओढ़ाई श्यामल बदन
पर
एक मखमली चादर
सपनों की परी सा
अहसास करती है।
सब दिन जिया जिसकी
याद में
निशा के घिर आने
तक
निरजल तरसती एक
बूंद के लिए
प्रियतम के लिए चाँद
की चकोर बन जाती है।
ढूंढती बादलों की
ओट से
चाँद में अपने
प्रीतम को
बेताब सजी धजी
पगलाई सी
अर्ग दे दोनों
हाथों से
दीर्घायु की कामना
करती है।
सजल हो प्रियतम के
हाथों
बाहों में सिमट
जाती है
करवा चौथ की ये
रात हर साल आती है।
----
आभारी है पति-जगत, व्रती-नारि उपकार ।
ReplyDeleteनतमस्तक हम आज हैं, स्वीकारो उपहार ।।
(महिमा )
नारीवादी हस्तियाँ, होती क्यूँ नाराज |
गृह-प्रबंधन इक कला, ताके सदा समाज ||
मर्द कमाए लाख पण, करे प्रबंधन-काज |
घर लागे नारी बिना, डूबा हुआ जहाज ||
सही कहा आपन रवि जी
ReplyDeleteघर पत्नी बिना डूबा हुआ जहाज।
इसे मैं अपनी वाल पर डाल रहा हूं ।