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Saturday 24 November 2012

एक बार फिर


एक बार
रूप अपना फिर संवार लो।

कंगना फिर वो पहनलो,
बिंदिया हक की वो मेरी
माथे पर सजालो
रूप अपना फिर संवार लो।

केश वही
फिर खोल दो
शाम फिर यूं ही गुजर जाने दो,
काजल न सही
आंखों में मुझको बसा लो
रूप अपना फिर संवार लो।

लाली न सही
होठो पर मेरा नाम रख लो
रचने कुछ नहीं कृति
हाथों मे नाम ही सजा लो
रूप अपना फिर संवार लो।

मुझे न सही
यादें मेरी, फिर बांधेंगी 
तुम्‍हारी आंखें
दुबारा फिर मुझे तलाश लो
रूप अपना फिर संवार लो।
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