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Friday 9 November 2012

तुम्‍हारी याद में



चले जाने के बाद
वो दिन चला
छोड़ अंधेरी रातें,
गिनने के लिए
अनगिनत तारे
शेष जिन्‍दगी के।
छोड़ आया जिसे उसी शाम,
ले आया वहीं से
दर्द भरी यादें तुम्‍हारी
देकर खुशियां सभी।
अजनबी हो यहां गया मैं
पहचान खो गई यहां की,
है यहां पर मेरे अपने सभी
अकेला फिर भी रह क्‍यों गया
तुम्‍हारे बिन।
काटने को दौड़ता है एक लम्‍हा
घुमता खाली समय है
इर्दगिर्द मेरे
व्‍योम में भटकते आवारा
पिण्‍ड की तरह,
गुजरे क्षणों की
यादों को तलाशने के लिए।
पागल सा बना गई
वो सुहानी शाम
छूट सी हर चीज़ गई
जिन्‍दगी के हर मोड़ पे।
गुमसुम सा बीत जाता है
दिन दिन.....
और ऐसे ही बीत जाती है
वो सुहानी शाम।
लग जाती है आंख
याद लेकर तुम्‍हारी,
जगाती है किरण
उषा काल की,
दस्‍तक देकर तुम्‍हारी याद की।
फिर गुजरने लगता है
पल-पल जैसे उस दिन का
एक-एक युग के बराबर
तुम्‍हारे लौट आने की
इन्‍तजार में।

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