निशा खड़ी द्वार
पर,
स्वप्नों की टोली लिए,
स्वप्नों की टोली लिए,
निद्रा के आलिंगन
में डूबी
अधरों पर मन्द
मन्द खिलती
कलियों की सी मुस्कान
लिए,
आने दो-आने दो स्वप्नों
की सौगात
इन दो नयनों समाने
के लिए,
कौन-कहां-क्या
इसमें
बस की मेरे बात नहीं
खो जाओ इसमें तुम परमानन्द के लिए
खेलो-खेलो
संग मेरेबस की मेरे बात नहीं
खो जाओ इसमें तुम परमानन्द के लिए
मिल जाऊँ गर तुम्हें यहां
मेरे संग दुनियां को भूल जाने के लिए,
कितना खेले, कितना सताया,
वो रात भी बैचेन अब सब जानने के लिए
अति सुन्दर...
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