आंखों के समन्दर से तुम
उतरती मन की गहराइयों में,
छा जाते हो बनकर बादल
मस्तिष्क के मानस पटल पर,
याद तुम जब आते हो।
झोंके मन्द मन्द पवन के
झकझोरते हैं मुझे बार-बार,
हिला जाते हैं तार-तार
सोए मन की वीणा के,
याद तुम जब आते हो।
गम सुम सा बैठा अधीर मैं
डर अपने साए से लगता है,
खो न जाए कहीं अमानते-ए-जिन्दगी
इसी सोच में टूटती खामोशी,
याद तुम जब आते हो।
संग खेलते ये जीव-जन्तु,
इनके प्यार की देन है ये प्रकृति,
सभी तरह की प्रकृति
तुम हो मेरे लिए,
बयां किस तरह करूं
याद तुम जब आते हो।
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बहुत खुब.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति ...
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