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Wednesday 5 December 2012
चिंता
खामोश पड़ी
इन्तजार की चिता
अब धधक उठी है।
इन्ही के शोलो में
सुलग रहा हूं मैं,
एक मिलन की आस लिए।
उठ चल अपने सावन के साथ
काली घटा बनकर,
आंचल में तुम जो समेट लाई हो
बरसा दे वो शबनम के मोती
अब तो कुछ राहत मिले।
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