Click here for Myspace Layouts

Friday 14 December 2012

क्षणिकाएं


कुछ जिन्‍दगी यूँ कटी पहले
न काँटों पर थी न फूलों पर
अब यू कट रही जिन्‍दगी
लुड़कते राह के पत्‍थर की तरह।
----
शामिल होगा जब वो क्षण
सज जाएगी महफिल जिन्‍दगी की
इन्‍तजार अब तो महफिल शुरू होने का
अब कोई पर्दा नशीं न आए
तो बज उठे बांसूरी जिन्‍दगी की।
----
सदा मुस्‍कुराहट रहे जिन्‍दगी में
तुम्‍हारे चेहरे पर रहे
जैसे टोकरी की गोद में रखे
मुस्‍कुराते फूलों की तरह।
----

1 comment:

  1. वाह बहुत शानदार और क्षणिकाएं

    ReplyDelete