अब सार्थक होंगी ये सदाएं
दी थी जो अकेलेपन की वीरान गलियों से।
अब आएगी फिर नए अन्दाज से बहार,
उजड़ गई थी जो पतझड़ से।
आ रहा बासन्ती मौसम
बन कर पूर्वाई
अतृप्त धरा की प्यास बुझाने।
काली घटा बनकर ले अपनी बदली
उड़ चलेगा पछुवाई बनकर
चीरती बयार इन्द्रधनुषी पथ से।
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बहुत सुंदर पंक्तियां संजय जी
ReplyDeleteअव्यवस्था के प्रति असंतोष से उपजता आंदोलन
कुछ अलग सी पोस्ट सच्चाई से कही गयी बात अच्छी लगी
ReplyDeleteशानदार लेखन,
ReplyDeleteजारी रहिये,
बधाई !!