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Tuesday 25 December 2012

बिन तेरे


बह रही जीवन नैया
अश्‍कों की धार पर
बिन आंचल के पाल के।
किराना कर किनारे से
फंस गए मझदार में,
बिन बांहों की पतवार के।
चल रही आंधियां
लौट गा बसन्‍त भी
सूरज की तपती तेज किरणें
हो गई चंदा की चांदनी भी
बिन शरद की छावं के।
तन्‍हाइयों से जज्‍ब अंधेरों से
गुज रही जिन्‍दगी
जला रही रोशनी
तुम्‍हारी याद के दीपों की,
ऐसे में तक संजोए रखूं
इन दीपों की रोशनी
बिन उजाले अंधेरी छांव के।
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