बह रही जीवन नैया
अश्कों की धार पर
बिन आंचल के पाल के।
किराना कर किनारे से
फंस गए मझदार में,
बिन बांहों की पतवार के।
चल रही आंधियां
लौट गा बसन्त भी
सूरज की तपती तेज किरणें
हो गई चंदा की चांदनी भी
बिन शरद की छावं के।
तन्हाइयों से जज्ब अंधेरों से
गुज रही जिन्दगी
जला रही रोशनी
तुम्हारी याद के दीपों की,
ऐसे में तक संजोए रखूं
इन दीपों की रोशनी
बिन उजाले अंधेरी छांव के।
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