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Thursday 21 February 2013

मिल गया



उलझनों के भँवर में
फँसी जिन्‍दगी को
आज फिर एक सहारा मिल गया।

हकीकत से दूर
भागती उम्‍मीदों को
एक मुकाम मिल गया,
अपनों से जिन्‍दगी को
आज फिर एक उपहार मिल गया।

नश्‍तर चुभते
जिस्‍म में
कोई अनचाहा जख्‍म दे गया,
बहती अश्रुधारा
कराहती जिन्‍दगी में
आज फिर कोई मरहम दे गया।

पुल्कित से मन को
नया परवाज मिल गया,
फैले नील गगन में
आज फिर क्षितिज पर एक सितारा मिल गया।

अंधेरों में भटकते
अरमानों के कदम,
उदास आंखों को
आज फिर एक ख्‍वाब मिल गया।
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1 comment:

  1. बहती अश्रुधारा , कराहती ज़िंदगी मे
    आज फिर कोई मरहम दे गया , वाह जी ! लाजवाब रचना

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