रूमानी हुई लेखनी
कलम खूब रोई
आंसूओं सी बिखर गई
स्याही कागज से कोरे आंचल पर।
रूक गई आहिस्ता से
फिर चली बंजर जमीं पर
घबराई सी कोरे कागज पर।
दृवित हुआ मन
सदाएं देती खामोश सी
शुष्क अधरों पर
वाणी भी कपकापाई सी।
पुलक्ति हुआ मन
आंखों में रूलाई सी
इबारत को दोष देती
उठी निगाह रोई-रोई सी।
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बहुत सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति कैग [विनोद राय ] व् मुख्य निर्वाचन आयुक्त [टी.एन.शेषन ]की समझ व् संवैधानिक स्थिति का कोई मुकाबला नहीं . कैग [विनोद राय] मुख्य निर्वाचन आयुक्त [टी.एन.शेषन] नहीं हो सकते
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