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Wednesday 7 August 2013

शाखों पर बहार आ गई

स्‍वरचित अप्रकाशित

फिर खड़ी हुई अंगड़ाई लेकर
शाखों पर बहार आ गई।

रूप का लावण्‍य
यूं बिखर गया धरती पर
सितारों में भी चमक आ गई।

झुकी नजरों से देखा
यूं बिखरे सितारों को
फूलों को भी हंसी आ गई।

सांझ के धुधलके
तेरी यादों में घुल जाएं।

बलखाती सी देख देह तुम्‍हारी
शिराओं में भी रवानगी आ गई।

फिर खड़ी हुई अंगड़ाई लेकर
शाखों पर बहार आ गई।

-
कुं. संजय सिंह जादौन (साहिल)

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