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Sunday 13 January 2013

कुछ नया



वक्‍त काली स्‍याही
कुछ लिख गई
जीन के कोरे कागज पर
किताबों को संवारते-संवारते
गुजर गया दो जवां दिलों को
मिलने का वो साल....

फिर चमके जुगनूं
गहराई अंधेरी रात में
भोर हुई फैला उजियाराा
मिटा तिमिर जीवन का
कुछ नया लिखने को....

फिर उठी अंगुलियां
तेरे शाने पर
बिखरी जुल्‍फें संवारने को
हाथों में तेरा चेहरा
गुलाब की तरह लेने को....

बांहें फैला दी
तेरे साथ लचने को
दो कदम चलकर देखा
डगर पुरानी थी,
चुनने हैं काँटे
तेरी राहों से
नर्इ मंजिल पाने को....
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